Bihar Politics: जाति गणना ने और गरमा दी बिहार की जातीय राजनीति, अब इस कॉम्पिटिशन में उलझे सियासी दल

हाइलाइट्स

जातिगत गणना के बाद बिहार में जातीय रैलियों की सियासत तेज.
राजनीतिक दल जातियों को साधने में लगा रहे एड़ी चोटी का जोर.
महापुरुषों के बहाने राजनीतिक पार्टियां कर रहीं जातीय सम्मेलन. 

पटना. बिहार में जाति की राजनीति कोई नई बात नहीं है. शायद ही कोई ऐसा चुनाव हुआ हो जिसमें जाति का कार्ड राजनीतिक दलों ने न खेला हो. अब जब एक बार फिर से बिहार में लोकसभा चुनाव की आहट तेज होती जा रही है बिहार में भी राजनीतिक दलों ने जातियों को साधने की कवायद तेज कर दी है. सभी पार्टियां जातियों को लुभाने के लिए जातीय रैली करने में जुट गई है और इसकी शुरुआत जदयू ने भीम संसद कर दी. इसके बाद अन्य राजनीतिक दल भी पीछे नहीं हैं.

दरअसल, जातिगत गणना के बाद जातियों की संख्या जैसे ही सामने आई वैसे ही राजनीतिक दलों ने अपने वोट बैंक माने जाने वाले जातियों को साधने की क़वायद शुरू कर दी है. इसकी वजह भी साफ है क्योंकि हर राजनीतिक दल को किसी न किसी जातीय समीकरण से जाना जाता है और उसी को ध्यान में रखकर ये कवायद की जा रही है. लेकिन, जातिगत गणना के आंकड़े के बाद बिहार की राजनीति काफी बदली है और समीकरण भी. इसकी तस्वीर अब राजनीतिक दलों की दिखने लगी है और जो जातियां उनके साथ मजबूती से नहीं जुड़ी हैं, उन्हें भी साधने की कोशिश में लगे हुए हैं.

जदयू ने भीम संसद से की शुरुआत
जदयू ने गत 24 नवंबर को पटना के वेटनरी ग्राउंड में भीम संसद का आयोजन किया, जिसमें जदयू के तमाम दलित नेताओं ने पूरी ताकत लगाई थी और रैली भी सफल हुई. बाबा साहब भीम राव अंबेडकर की याद में भीम संसद का आयोजन कर दलितों को लुभाने की कोशिश जदयू की तरफ से की गई. वहीं, आज अति पिछड़ा वोटर पर जदयू की निगाहें टिकी हुई है जो जदयू का वोट बैंक माना जाता है. आगामी 24 जनवरी को वेटनरी ग्राउंड में ही कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती समारोह के मौके पर बड़ी रैली की तैयारी में जुट गया है. दूसरी ओर 28 जनवरी को पटना के मिलर स्कूल में जदयू के MLC संजय सिंह महाराणा प्रताप की याद में एक रैली का आयोजन कर राजपूत वोटरों को जदयू से जोड़ने की कवायद में लगे हुए हैं.

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सर्वसमाज की बात मगर राजनीति जाति की
पार्टी विद डिफरेंस का नारा देने वाली बीजेपी भी जातीय रैलियां करने में पीछे नहीं है. बीजेपी ने गोवर्धन पूजा के बहाने यदुवंशी सम्मेलन का आयोजन कर यादव वोटर, जो आरजेडी का मजबूत वोटर माना जाता है, बड़ा मैसेज देने की कोशिश की. वहीं 7 दिसंबर को बीजेपी अंबेडकर समागम सम्मेलन कर जदयू के भीम संसद का जवाब देने की कोशिश की ताकि दलित वोटरों को लुभाया जा सके. आने वाले समय में अभी कई राजनीतिक दल जातीय सम्मेलन की तैयारी में लगे हुए हैं, ताकि जातियों को साधा जा सके. लेकिन, इन सबके बीच ये सवाल भी उठता है कि क्या जातीय सम्मेलन से जाति का भला होता है या जातिवाद को बढ़ावा मिलता है?

भाजपा का अंबेडकर समागम.

कास्ट पॉलिटिक्स से कोई भी दल अलग नहीं
बिहार के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडे कहते हैं कि बिहार में कास्ट पॉलिटिक्स से शायद ही कोई राजनीतिक दल अलग हो सकता है. आप चुनाव में कोई भी मुद्दे पर लड़ें, लेकिन वोट आपको जातियों की राजनीति कर ही मिलने हैं. बिहार में जो भी राजनीतिक दल हैं वो इसे बेहतर समझते हैं, चाहे उन पर कोई भी जाति की राजनीति करने का आरोप लगे वो इससे पीछे हटते नहीं दिखते हैं. अब जब जातिगत गणना हो गया है तब तो जातियों का महत्व और बढ़ गया है. यही वजह है कि राजनीतिक दल जातीय आंकड़े को देखकर अपनी रणनीति भी बना रहे हैं.

Tags: 2024 लोकसभा चुनाव, Bihar politics, Caste Census, Caste politics, Loksabha Election 2024, Loksabha Elections, लोकसभा चुनाव राजनीति

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