यह कहानी भारतीय सेना के ‘महावीर’ लेफ्टिनेंट कर्नल अरुण भीमराव हरोलीकर को समर्पित है. यह बात आज से करीब 52 साल पहले 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की है. लेफ्टिनेंट कर्नल अरुण भीमराव हरोलीकर उन दिनों 4/5 गोरखा राइफल्स की कमान संभाल रहे थे. दुश्मन को सबक सिखा लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए गोरखा 4/5 गोरखा राइफल्स ने सिलहट की ओर बढ़ने का फैसला किया था और इसी दिन उन्हें ‘सिलहट गोरखा’ नाम से नवाजा गया था.
लेफ्टिनेंट कर्नल हरोलीकर के नेतृत्व में आगे बढ़ रही गोरखा राइफल्स के लिए यह टास्क इनता आसान नहीं था. शायद गोरखा राइफल्स के बढ़ते कदमों की आहट दुश्मन को लग चुकी थी. लेफ्टिनेंट कर्नल हरोलीकर के कदमों को रोकने के लिए पाकिस्तानी सेना ने मेघना नदी पर बने पुल को पाकिस्तानियों ने उड़ा दिया, जिससे सिलहट से बाकी क्षेत्र का संपर्क टूट गया. अब मेघना नदी को पार कर गंतव्य तक पहुंचाना इनता आसान न रह गया था, लिहाजा नदी पार करने के लिए भारतीय वायु सेना की मदद लेने का फैसला किया गया.
भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन चंदन सिंह के नेतृत्व 7 दिसंबर को 4/5 गोरखा राइफल्स को एयर लिफ्ट करने का काम शुरू किया गया. भारतीय वायु सेना अपने एमआई-4 गनशिप विमानों से भारतीय जांबाजों को भैरब बाजार और सिलहट के बाहरी इलाकों में एयरलिफ्ट कर रही थी. उस दिन, 4/5 गोरखा रेजिमेंट के 254 जवानों और 400 किलो उपकरणों को लड़ाई के लिए 22 उड़ानों के जरिए एयरलिफ्ट किया जा रहा था. लेफ्टिनेंट कर्नल हरोलीकर अपने जवानों के साथ सिलहट और भैरब बाजार के इलाकों में एयरलिफ्ट तो गए, लेकिन चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई.
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ऐसा लग रहा था कि मानो पाकिस्तान सेना की 313 इन्फैंट्री ब्रिगेड जैसे उनके आने का इंतजार ही कर रही थी. जैसे ही लेफ्टिनेंट कर्नल हरोलीकर अपने जवानों के साथ सिलहट और भैरब बाजार में लैंड हुए, पाकिस्तान की पूरी ब्रिगेड ने उन पर लगभग गोलियों और बारूद की बरसात शुरू कर ली. इस मुश्किल वक्त में लेफ्टिनेंट कर्नल हरोलीकर के सामने दो चुनौतियां थीं, पहली- दुश्मन का सामना करना और दूसरा – बचाव और हथियार लेकर आ रहे हेलीकॉप्टर को दुश्मन के निशाने से बचा कर रखना.
लेफ्टिनेंट कर्नल हरोलीकर और उनके साथी दोनों ही चुनौतियों को बखूबी निभा रहे थे. लेकिन, अब समय के साथ लेफ्टिनेंट कर्नल हरोलीकर के साथी घायल होने लगे थे, कुछ वीर गति को प्राप्त हो गए थे और गोलियां भी खत्म होने को थी. बावजूद इसके, लेफ्टिनेंट कर्नल हरोलीकर और उनके साथियों ने हिम्मत नहीं हारी. चुनौती जितनी मुश्किल होती, वह उससे दोगुने जोश के साथ दुश्मन पर हमला करते. लेफ्टिनेंट कर्नल हरोलीकर और पाकिस्तानी सेना की ब्रिगेड के साथ यह युद्ध अगले सात दिन यानी 15 दिसंबर तक चला.
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आखिर में, पाकिस्तानी सेना की ब्रिगेड को लेफ्टिनेंट कर्नल हरोलीकर की बहादुरी के सामने घुटने टेकने ही पड़े. पूरी तरह से पस्त होने के बाद पाकिस्तानी सेना के 107 अधिकारियों, 219 जेसीओ और 6190 रैंक के अन्य जवानों सहित इन्फैंट्री ब्रिगेड के 313 पाकिस्तानी सेना के जवानों ने आत्मसमर्पण कर दिया. सिलहट की लड़ाई में वीरतापूर्ण नेतृत्व के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल हरोलीकर को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
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FIRST PUBLISHED : December 7, 2023, 08:57 IST